शनिवार, 2 अगस्त 2014

मधु सिंह : फूँक-फूँक चलती न जवानी



                             ( ब्रिटेन की धरती से )

जब गिर- गिर दहाड़ते   शैल-श्रिंग  भूचाल  धरा पर आता है
पड़ गए जिधर दो डग-मग पग  ज्वाल   विवर  फट  जाता है

फूँक-  फूँक  चलती  न  जवानी *  झंझा  तूफानों  से बचकर
जब   साहस  अपनी  ऊँगली   पर  पौरुष  का    भार उठता है

चढ़-  चढ़ जुनून  की छाती  पर जब  स्वाभिमान टकराता है
इतिहास तो क्या भूगोल युगों  का पल भर में बदल जाता है

क्या  हैं  न  पता  यह  तुझको  मैं   मूक  नहीं  युग बाणी हूँ
चलती  जब -जब  हुंकार  लिए  तब  व्योम  धरा   थर्राता है

रे  वर्तमान  के हठी समय ! तेरा यह कैसा इंगित आवाहन
तू  सम्हल   जरा  पौरुष   अजेय  द्वार   खड़ा  मदमाता है

  * दिनकर जी की पंक्ति                                                
                                                          मधु "मुस्कान"

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